Thursday, March 15, 2012

जिसे देखो दुहाई देता है...क्यूँ कोई किसी को रुसवाई देता है...
चाहत के नाम पे हर कोई क्यूँ इन्तेहा लेता है....

आज तो दिल कौरियों के दाम बिकता है...जिसे देखो आज मोहब्बत नीलाम करता है...
जुआ खेलते है मोहब्बत के नाम पे क्यूंकि कुछ तो मोहब्बत को भी खेल समझते है...

लोग यंहा पत्थर का दिल लेकर बैठे है, आंसुओं को भी सिर्फ पानी समझते है....
दिल की जस्बातों को क्या समझेंगे जो खुद मोहब्बत को दूर जाने पे मजबूर करते है....

ख्वाइश.....

एक ख्वाइश अधूरी सी रह गई..ये ज़िन्दगी एक पहेली सी बन गई...
जिसे मंजिल के तरफ रुख किया,वो मंजिल भी एक अजनबी सी थी..

उड़ने की तमन्ना अब टूट सी गई..जैसे हर खुशी आज हमसे रूठ सी गई...
बेनाम गलियों को चाहने लगे थे,आज आँखें खुली तो वो चाहत भी धुधली सी थी...

ख़ुशी मिले मुदततें हो गई.. तलाश ऐसी की ज़िन्दगी भी अब बेमानी सी हो गई...
उसे अपना बनाया जिसने हमे न दिल से अपनाया,कहने क लिए उसने मोहब्बत ही क्यूँ की थी....!!