ज़िन्दगी से गिला नहीं उनको... जिन्हें इस जिंदगी से कुछ मिला नहीं...
चाहत भी है पर इस चाहत की कोई मंजिल भी नहीं...
लफ्ज़ खामोश है शायद अब कोई आस नहीं...
जीने की खवाइश तो है, पर देखने के लिए कोई ख्वाब भी नहीं...
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कहीं दूर कोई डगर भी नहीं, जाऊं कहा कोई मंजिल भी नहीं...
रास्ता अगर जो दिख जाये तो चलूँ मैं, चलने के लिए कोई संग भी नहीं...
जो हमे समझले कोई ऐसा मिला नहीं....रोकर भी ये गम जाते नहीं...
अपनी इस चाहत को दवाऊं भी कैसे हम भी तो इंसान है कोई भगवान नहीं...
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very nice poem
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